लेखनी प्रतियोगिता -09-Apr-2022 विडंबना
वो स्वयं को लोकतंत्र का पुरोधा बताये बैठे हैं
और दशकों से पार्टी पर कब्जा जमाये बैठे हैं
कहते हैं कि सेक्युलरिज्म उनकी रग रग में है
खास समुदाय पर मेहरबानियां लुटाये बैठे हैं
अभिव्यक्ति की आजादी का राग अलापने वाले
इस देश में वर्षों तक "आपात काल" लगाये बैठे हैं
"संघवाद" की वकालत करते नहीं थकते हैं वो
जो बात बात पर "राष्ट्रपति शासन" लगाये बैठे हैं
गांधी का अनुयायी बताकर दिखते हैं अहिंसक
सिखों का कत्लेआम कर खून में नहाए बैठे हैं
सत्य और ईमानदारी के स्वयंभू ठेकेदार बने हुए हैं
झूठ की नींव पे "मक्कारी" का मकां बनाये बैठे हैं
सफेद कपडों के पीछे छुपे हैं न जाने कितने कारनामे
विडंबना तो देखो उनसे ही "भले की आस" लगाये बैठे हैं
हरि शंकर गोयल "हरि"
9.4.2022
Shrishti pandey
10-Apr-2022 11:05 PM
Very nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
11-Apr-2022 05:20 AM
💐💐🙏🙏
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Shnaya
10-Apr-2022 02:02 PM
Nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
10-Apr-2022 10:21 PM
💐💐🙏🙏
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Reyaan
10-Apr-2022 01:19 PM
Very nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
10-Apr-2022 10:21 PM
💐💐🙏🙏
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